Saturday, December 13, 2008

धीरज-4

धीरे-धीरे उसका होना लुप्त हो जाएगा

उसकी पहचान भी नहीं रह जाएगी आसान

वह एक आश्चर्य की वस्तु होगा

और फिजूल की भी

उसका होना अयोग्यता की निशानी माना जाएगा

निरीहता और कमजोरी को उसका पर्याय

सब तरफ़ नानाविध प्रकार की उत्तेजनाएं होंगी और उद्विग्नतायें

इतनी कि उससे विमुख हो जाने का पता भी नहीं चलेगा

कोई जगह नहीं बची रहेगी उसके लिए

ना ही समय

हर पल किसी चरमोत्कर्ष पर बिता लेने कि चाहत में

तेजी और हडबडाहट और बेचैनी इतनी बढ़ी हुई होंगी

कि दूसरे किसी में भी उसका होना सिर्फ़ एक खीज पैदा करेगा

उसके अभाव में रोजमर्रा का जीवन भी

एक चढ़े हुए उफान की तरह होगा

असीमित अनिष्चिताओं और उससे उपजे भय और व्याकुलता से

भरा

कभी -भी फट पड़ने और बिखर जाने को आतुर

कहीं कोई स्थिरता नहीं, कोई अवकाश नहीं



वह उपलब्ध होगा दूरदराज कि कहीं दुर्गम जगहों पर

किसी दुर्लभ 'एंटीक' की तरह

तो किसी को उसका नाम नहीं एगा याद

कोई उसे मूर्खता कहेगाकोई पागलपन

तो कोई मनुष्य के इस भाव की संज्ञा के लिए

लग जाएगा नए शब्द की खोज में

कुछ उसकी नई परिभाषा गढ़ने की भी करेंगे कोशिश

मगर इसी का अभाव

उनके इस काम में सबसे बड़ी अड़चन होगी

सारी कोशिशों की व्यर्थता के बाद

अंततः थककर या बिना थके ही

भाषा के साथ-साथ

मनुष्य के भावों की सूची में से भी

इसे कर दिया जाएगा खारिज

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